महिला समानता दिवस

महिला समानता दिवस

बात उस समय की है, जब महिलाओं को समाज में कोई अधिकार नहीं थे। हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज बना हुआ था और उसमे कई बुराइयाँ थी। 

  • महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। 
  • महिलाओं को सम्मान नहीं दिया जाता था। 
  • घर की चारदीवारी में बन्द रहना होता था। 
  • जहां उसके अपने कई सपने होते थे। 
  • सपनो को पूरा करने की आजादी तक नहीं होती थी। 
  • उन्हें वोट करने का अधिकार नहीं था। 

जहां महिलाओं को ऐसा महसूस करवाया जाता था। की वह इस समाज के लिए नहीं बनी है। समाज और पुरुषों द्वारा महिलाओं को ठुकरा दिए जाता था। उस समय महिलाओं की समाजिक स्थिति सही नहीं थीं। समाज में महिलाओं की स्थिति को देखते हुए और उनके उत्थान के लिए अमेरिकी कॉंग्रेस ने 26 अगस्त 1971 को “महिला समानता दिवस” के रूप में मनाने की घोषणा की।

महिला समानता दिवस की शुरुआत।

महिला समानता दिवस की शुरुआत 1971 से हुई। 26 अगस्त के दिन अमेरिकी महिलाओं को कानूनी रूप से वोट करने का अधिकार दिया गया था। इससे पहले वोट देने का अधिकार केवल पुरुषों को ही था। अमेरिकी संविधान में सन् 1920 को 19वां संशोधन किया गया था। इसी संशोधन के तहत समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्हें वोट करने का अधिकार दिया गया। समाज निर्माण में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के समान की गई । बेल्ला अब्ज़ुग के प्रयासों से ही महिलाओं को समानता का दर्जा मिला। इससे पहले न्यूज़ीलैंड एक मात्र ऐसा देश था। जिसने सर्वप्रथम 1893 में ही। महिला समानता दिवस मनाने की घोषणा की थी। आगे चलकर अन्य देशों ने भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्रदान किया। अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक महिला समानता दिवस मनाया जाने लगा है। समाज में महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करवाया जाने लगा।

भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति।

नकारात्मक स्थिति का परिचय।  

उस समय कुल मतदान करने वाले 17.3 करोड़ वोटर थे। जिसमें से 8 करोड़ केवल महिला वोटर थीं। महिलाओं को वोट देने का अधिकार तो मिल गया। परन्तु पंचायती और नगर निकायों में महिलाओं को वोट करने का अधिकार 73वे संविधान संशोधन 1992 के तहत दिया गया। 

लेकिन एक तरफ आज भी कुछ परिवारों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर समानता का अधिकार नहीं दिया जाता है।

  • आज भी महिलाओं को अपने फैसले लेने पर रोका जाता है। 
  • पुरुषों के बराबर महिलाओं को शिक्षा नहीं दी जाती। 
  • काम के लिए उन्हें आज भी घर से बहार नहीं भेजा जाता। 
  • न ही उनके अच्छे खान-पान पर ध्यान दिया जाता है । 
  • महिलाओं को परिवार और समाज के रीति-रिवाज़ों में बांध दिया गया है।

सकारात्मक स्थिति का परिचय।  

आज भी समाज में ऐसी महिलाओं के उदाहरण मौजूद है। जो पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। हमारे देश में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है। जहां महिलाओं ने अपनी शक्ति का परिचय नहीं दिया। बात करते है उन महिलाओं की जिन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। 

प्रथम महिला राष्ट्रपति     –  प्रतिभा देवीसिंह पाटिल 

प्रथम महिला प्रधानमत्री  –  इंदिरा गांधी 

प्रथम महिला राज्यपाल   –  सरोजनी नायडू 

प्रथम महिला मुख्यमंत्री   –  सुचेता कृपलानी

प्रथम रक्षा एव वित्तमंत्री   –  निर्मला सीतारमण 

  • शिक्षा, विज्ञान, खेल, व्यापार, प्रौद्योगिकी, राजनीतिक, हॉलीवुड और बॉलीवुड जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती हुई भागीदारी को देखा जा सकता है।
  • महिलाओं में आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास की भावनाएं बढ़ी है।
  • आज महिलाएं व्यवसाय के उन क्षेत्रों को भी अपना रहीं है। जिन पर केवल पुरुषों का एकाधिकार था।
  • नर्स, पायलट, इंजीनियर, रिपोर्टर और अंतरिक्ष मिशन में भाग लेकर अपनी नई पहचान बनाई है।

भारत में महिला साक्षरता।

साक्षरता और शिक्षा देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के दो अहम पहलू है। समाज में महिलाओं की आर्थिक दशा को सुधारने और पुरुषों तथा महिलाओं के मध्य व्याप्त बराबरी के इस अंतर को जल्द मिटाने के लिए साक्षरता दर को देख सकते है। देश में 1947 में साक्षरता दर 12% थी। 2011 में इस साक्षरता दर में काफी सुधार देखा गया। जो अब बढ़कर 74.04% हो गयी। 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता 82.14% रहीं। जबकि महिला साक्षरता 68.46 रहीं। महिला व पुरुषों के बीच साक्षरता का यह अंतर कम होता देखा जा रहा है। बीते कुछ समय में महिलाओं की गिरती हुई स्थिति में उछाल आया है।

महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास।

समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और उसे आत्मनिर्भर, शक्ति और महिला भागीदारी को मजबूत बनाने के लिए समय-समय पर सरकार अनेक योजनाएं चलाती है। ताकि महिलाएं इन योजनाओं का लाभ उठा सके और स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत बना सके। जिससे महिलाएं समाज और राष्ट्र निर्माण में आगे चलकर अपना योगदान दे सकें। सरकार द्वारा बेटियों और उधमी महिलाओं के लिए चलाई गई योजनाएं निम्न है।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना। 

यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को चलाई थी। कुछ माता-पिता और उनके परिवारों द्वारा बेटियों को जन्म लेने से पहले ही भूर्ण में मार दिया जाता है। इस समस्या से निपटने और बेटियों के गिरते हुए जीवन स्तर को बचाने के लिए इस आयोजन का शुभारम्भ किया गया। ताकि महिलाओं का भविष्य उज्जवल हो। उनके जीवन स्तर को शिक्षा के द्वारा ऊपर उठाया जाएं।

सुकन्या समृद्धि योजना। 

कन्याओं को माता पिता द्वारा बोझ न समझा जाएं। इसके लिए लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और शादी के लिए माता पिता को आगे चलकर कोई कर्ज न लेना पड़े। इसके लिए सरकार ने ये योजना चलाई है। इस योजना के तहत 10 साल से पहले किसी बैंक या डाक घर में लड़की का खाता खुलवाना होता है।

अन्नपूर्णा स्कीम। 

महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करने के लिए इस योजना का शुभारंभ महिलाओं के लिए किया गया था।  इस स्कीम के तहत फुड कैटरिंग का बिज़नेस करने वाली महिलाओं को 50000 का लोन भारत सरकार देती है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना स्कीम। 

जो महिलाएं अपना काम करके आगे बढ़ाना चाहती है। इस योजना के तहत उन महिलाओं को 50000 से 500000 तक की आर्थिक सेवा उपलब्ध करवाई जाती है। जिसमें महिलाएं भी इस सेवा का लाभ अपना टूशन सेंटर खोलने, पार्लर खोलने और टेलरिंग सेंटर खोलने या किसी अन्य कारोबार में कर सकतीं है।

वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति में सुधार देखा जा सकता है। लेकिन सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं का उन्हें पूरी तरह लाभ नहीं मिलता। महिलाएं पुरुषों के बराबर खड़ी होकर अपने कर्तव्यों को निभा रहीं हैं। आज पुरूषों की महिलाओं के प्रति मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। वर्तमान समय में पुरुष महिलाओ को आगे बढ़ने में सहयोग कर रहे है।

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