वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हिन्दी में अर्थ :
वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड
महाकाय: महा काया अर्थात विशाल शरीर
सूर्यकोटि: सूर्य के समा तेज
समप्रभ: महान प्रतिभाशाली
निर्विघ्नं: बिना विघ्न
कुरु: पूरे करें
मे: मेरे
देव: प्रभु
सर्वकार्येषु: सारे कार्य
सर्वदा: सदैव
हमारे भारत देश में हिन्दू धर्म को मान्यता दी जाती है। हिन्दू धर्म में दीपावली,होली, दशहरा, राखी, शिवरात्रि ऐसे बड़े उत्सव है। जो बड़ी धूम से हमारे हिन्दू समाज में मनाएं जाते है। ऐसा ही एक त्यौहार श्री गणेश चतुर्थी का है। गणेश चतुर्थी का त्योहार महाराष्ट्र का प्रमुख त्योहार है। इस पर्व को मां पार्वती के पुत्र श्री गणेश के जन्म उत्सव के रूप में संपूर्ण भारत में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। भगवान श्री गणेश को सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। किसी भी काम में रुकावट न आए।इसके लिए सर्वप्रथम श्री गणेश का नाम लिया जाता है। शादी- विवाह वह किसी भी मांगलिक कार्यों को करने से पहले भगवान श्री गणेश को आगमन के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। ये परम्परा वर्षों से चलती आ रहीं है। श्री गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की बड़ी मूर्ति बनाई जाती है।
मंदिरों और घरों में पूजा व स्तुति के साथ मूर्ति की स्थापना करवाई जाती है। नौ दिनों तक उपवास रखकर इनकी अराधना की जाती है। नौवें दिन नाज, गाने, और बाबा के जयकारे लगाते हुए।रीति रिवाज़ इनको विदाई देते हुए पानी में इनका विसर्जन कर दिया जाता है। गजानंद जी से फ़िर से जल्द आने की कामना की जाती है।वास्तव में सभी हिन्दू इस त्योहार को वर्षों से गणेश महोत्सव के रूप में मनाते आ रहें है। लेकिन सभी इस त्योहार को मनाए जाने के वास्तविक सच से आज तक अनजान है।
श्री गणेश के जन्म को लेकर शिव पुराण और वरहा पुराण में अलग अलग कथाएं प्रचलित है।
शिव पुराण के अनुसार।
शिव पुराण की कथाओं की मान्यता के अनुसार कहां जाता है की माता पार्वती ने श्री गणेश को बनाया था।भगवान श्री गणेश का जन्म भादवे मास की शुक्ल चौथ को हुआ था। भगवान श्री गणेश के जन्म पर एक कथा प्रचलित है। कहां जाता है की भगवान शिव घूमने निकले हुए थे। मां पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उसी समय उन्होंने अपने शरीर से मेल उतारा। उसी मेल से भगवान श्री गणेश की मूर्ति बनाई। और उस मूर्ति में प्राण फूंक दिए। मां पार्वती स्नान के लिऐ जाते समय श्री गणेश को द्वार की पहरेदारी करने और किसी को भी उसकी आज्ञा के बिना अंदर प्रस्थान न करने दिया जाएं का आदेश देती है।इसके कुछ समय बाद भगवान शिव आते है। और वह श्री गणेश की अनुमति के बिना अंदर जानें लगते है।
माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए श्री गणेश भगवान भगवान शिव को अंदर जानें से मना करते है। भगवान शिव और भगवान श्री गणेश दोनों में टकराव बढ़ जाता है।उसी समय भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं। की वह कौन है जो उन्हें अंदर जानें के लिऐ मना कर रहा है। तब भगवान शिव अपना वज्र निकालते है और श्री गणेश पर अपना प्रहार करते है। उसी समय उनका सर उनके धड़ से अलग हो जाता है। इतने में आहाकार मच उठता है। मां पार्वती बाहर आती है।आकर भगवान गणेश को मर्त स्थिति में जब देखती है। और ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगती है।तब वह भगवान शिव पर गौर क्रोधित हो जाती है। और आरोप लगती है की उन्होने उनके बेटे को मार दिया।
गणेश का पुनर्जीवन।
पार्वती का यह रूप देखकर भगवान शिव और सभी देवता चिंता में आ जाते है। और उन्हें फ़िर से जीवित करने की प्रार्थना करने लगते है। फ़िर वह जंगल में जाते हैं ।तब उन्हें हाथी का एक छोटा बच्चा मिलता है। उसी के सर को भगवान श्री गणेश के धड़ पर लगाकर उन्हें फ़िर से जीवित करते है। तभी से श्री गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कहे जाते है। उसी दिन से भादवा शुक्ल की ये चोथ श्री गणेश के जन्म उत्सव के रूप में मनाई जाती हैं।
वराह पुराण के अनुसार।
इस कथा में भगवान श्री गणेश के जन्म की बात करें तो बताया जाता है की भगवान शिव ने ही पंचतत्व को मिलाकर श्री गणेश को बनाया था। जब भगवान शिव पंचतत्व रूपी श्री गणेश बना रहें थे।उसी समय नारद मुनि भगवान शिव के पास आते हैं। उनसे पंच तत्वों से बने गणेश के बारे में पूछने लगते हैं। तब ये खबर नारद मुनि देवताओं तक पहुंचाते हैं। और उनकी विशिष्टता और रूप को देवताओं से उजागर करते है। फ़िर सभी देवता सोचने लगते है ऐसे तो सभी लोग इस विशेष शरीर रूपी गणेश को पुजेगे।तो हमें सृष्टि में कौन पूछेगा। तब सभी देवता शिव जी के पास उपस्थित हो जाते हैं। उन्हें आकर्षित रूप प्रदान करने से मना कर करते है। तब भगवान शिव उनके पेट को बड़ा करते है और सर की जगह हाथी की सूंड लगा देते हैं।