यूँ तो भारत और चीन में कई व्यापारिक समझौते हुए है। जिसमे बड़ी मात्रा में आयात और निर्यात हुआ है। परन्तु चालबाज चीन की करतूतों के चलते सीमा विवाद का मामला भी गरमाया हुआ है। चीन की विस्तारवादी सोच हमेशा से रही है। इसी के चलते वह हर पड़ोसी देश से विवादों में घिरा रहता है। हाल ही में जापान, भारत, नेपाल, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से चीन के सीमा विवाद चल रहें है। चीन सीमा विवाद के साथ राजनीतिक तरीकों से देश पर दबाव डालता है। कोशिश करता है, की देश की सेना, जनता और राजनेताओं का ध्यान सीमा विवाद पर ना जाए और वो जमीन हथिया ले। चीन ने भारत के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की है। परन्तु भारत के जाबाज सिपाहियों ने और देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व के चलते चीन की चाल कामयाब ना हो सकी। चलिए विस्तार से जानते है भारत और चीन के इस सीमा विवाद को…
भारत चीन सीमा विवाद का संक्षिप्त विवरण।
- अक्टूबर 1959 – कागड़ा दर्रे विवाद।
- 10 जुलाई 1962 – भारत चीन लड़ाई।
- 1967 – सिक्किम सैन्य संगर्ष ।
- 11 सितम्बर 1967 – नाथू ला झड़प।
- 1 अक्टूबर 1967 – चो ला झड़प।
- 20 अक्टूबर 1975 – तुलुंग ला झड़प
- 1986-87 – नामका चू झड़प।
- 16 जून 2017 – डोकलाम विवाद।
- 15 जून 2020 – गलवान घाटी घटना।
- 30-31 अगस्त – पैगोंग झील घटना।
अक्टूबर 1959 – कागड़ा दर्रे विवाद
1959 में कागड़ा दर्रे में भारत और चीन सिपाई के मध्य विवाद की स्थिति होने से एक दूसरे पर पत्थरबाज़ी शुरू हो गई थी, जिसमे 9 भारतीय जवान शहीद हुए थे। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के सहारे लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में भारत की और बढ़ता चला आ रहा था। चीन की इस नीति, और सेना के आपसी मुठभेड़ को रोकने के लक्ष्य से प्रधानमंत्री नेहरू जी के आदेश से 1959 में फॉरवर्ड पॉलिसी लाई गई। इस पॉलिसी के अनुसार,विवादित क्षेत्र अर्थात मैकमोहन रेखा के उतर में भारतीय सीमा में चौकी बनाकर चीन सिपाई की गुस्पेटी को रोकना था। पर चीन नहीं चाहता था की भारतीय इन सीमावर्ती क्षेत्र में अपनी चोकिया बनाएं। चीन ने अपने स्तर पर इसका ख़ूब विरोध किया और अरुणाचल के प्रदेश को अपना क्षेत्र बताता रहा। लेकिन भारतीय सिपाई ने उनकी नहीं चलने दी। इसके बाद चीन सिपाई सीमा रेखा लांघकर लद्दाख में घुस आते थे। इसे दोनों सेनाओं के बीज मुठभेड़ शुरू हो जाया करती थी।
19 अप्रैल 1960 भारत चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चाऊ एन लाई की मुलाक़ात हुई थी, जब जवाहरलाल नेहरु जी अपना मत चीन के प्रधानन्त्री के सामने रखते हुए, सीमा विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाने की बात कही। लेकिन चीन की नियत दिन भर दिन ख़राब होती जा रही थीं और 1961 में इस विवाद को सुलझाने से मना कर दिया। 10 जुलाई 1962 को चीन सिपाई ने भारतीय सीमा में घुसपेठी करते हुए, चुसुल पोस्ट को 4 महीने तक अपने घेरे में रखा। दोनों सेनाओं की आपसी तानातानी से कई भारतीय जवान शहीद हुए। सीमा पर दिन-प्रतिदिन हो रहीं घटना को नज़रंदाज़ न करते हुए, भारत ने अपनी और से विवादित भू क्षेत्र में दो टुकड़ी और तैनात कर दी थीं। जबकि चीन ने अपनी और से युद्ध की मंशा से तीन रेजिमेंट तैनात कर दी थीं। भारतीय सिपाई को इस बात की भनक तक न लगने दी।
1962 की लड़ाई।
20 अक्टूबर 1962 शनिवार के दिन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने विवादित क्षेत्र लद्दाख और मैकमोहन रेखा को पार करते हुए,दोनों और से भारतीय सिपाई पर गोलाबारी शुरू कर दी थीं। उस समय पूर्वी क्षेत्र की सेना कमान चोथी कोर के कमांडर बिजी कोल के हाथों थीं, जो सिपाही को पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं कर पाए थे, जिसे भारतीय सेना को मजबूरन चीनी सेना के आगे अपने घुटने टेकने पड़े। चीन की चालबाज़ी सेना ने 32 दिन के बाद, 20 नवंबर 1962 के दिन एकतरफा भारत-चीन युद्ध रोकने की घोषणा करते हुए,पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
- 1950 में चीन ने अपने राजनीति नक्शे में भारत के बड़े भू भाग शामिल कर लिया था।
- जुलाई 1954 में नक्शे में बदलाव को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी ने प्रधानमंत्री झाऊ एन लाई को नक्शे में बदलाव के लिए पत्र लिखा, लेकिन उन्होंने कहां नक्शा जारी करते समय गलती हो गई थीं।
- 1959 में भारत ने अपने यहां चीन के दुश्मन तिब्बत के धर्म गुरु को अपने यहां शरण दी थीं, जिससे की सीमा पर सेना विवाद अधिक बढ़ गया। चीन के नेता माओ जेदोंग भारत पर गरमा गए और इस घटना का गुनहगार भारत को माना जानें लगा।
- चीन के नेता माओत्से तुंग को ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ आंदोलन में असफलता का सामना करना पड़ा, जिसके चलते सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर फिर से नियंत्रण स्थापित करने की इच्छा से भारत के साथ यह युद्ध किया था।
युद्ध हारने के कारण।
- भारत की और से लड़ने वाले सैनिकों की संख्या 10-12 हज़ार के करीबन थीं, जो चीन सेना के मुक़ाबले आदि भी न थीं।
- उन दिनों सीमा पर चीन सेना, भारतीय सेना के बीज झड़पें बढ़ती जा रही थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन और चोथी कोर के कमांडर बिजी कोल ने सीमा पर चल रहे हिंसा को देखते हुए भी युद्ध की तैयारी नहीं की थीं।
- चीन ने भारत को अपनी बनावटी राजनीति में फंसा रखा था, जिसके चलते सीमा पर चल रहें विवाद पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया था।
- लेफ़्टिनेंट जनरल बीएम कौल को रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने अरुणाचल प्रदेश का कोर कमांडर नियुक्त किया था, लेकिन उनके पास युद्ध का कोई अनुभव नहीं था।
- भारत की आंतरिक ख़ुफ़िया एजेंसी (आईबी ) के प्रमुख भोला नाथ मलिक चीन की बढ़ती हुई गतिविधियों पर निगरानी नहीं रख पाए थे।
- लद्दाख की कठिन भौगोलिक क्षेत्र में नौजवानों को लड़ने का अनुभव नहीं दिया गया था।
- इस युद्ध में भारतीय वायु सेना और नौसेना को शामिल नहीं किया गया था।
1967 सिक्किम सैन्य संगर्ष ।
1962 की भारत, चीन लड़ाई भारत के लिए किसी तकलीफ़ से कम न थी। हालांकि बाद में भारत को मिलीं हार को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीति हार घोषित कर दिया गया था। लेकिन यही वो हार थीं जो भारत को आगे आने वाली परिस्थितियों से सतर्क रहने का संदेश दे गई थीं। जिससे की 1967 की भारत, चीन झड़प में भारतीय सिपाई ने चीन सेना को खून के आंसु रुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थीं। इस युद्ध के दोनों मोर्चे में भारतीय सिपाई, चीन सेना पर भारी पड़े। चीन के 400 सैनिक भारत के 65 सैनिक शहादत हुए थे।
- 11 सितम्बर 1967 – नाथू ला झड़प।
सिक्कम को हथियाने की मंशा से चीन सेना ने युद्ध के लिए नाथू ला में गड्डे खोदने शरू कर दिए। भारतीय सिपाही उन्हें ऐसा करते देख, उन्हें गट्टे खोदने से रोकने लगीं। उस समय भारत,चीन सीमा के मध्य कोई तारबंदी नहीं थीं, नाथू ला पास की रक्षा करने जिम्मा 2 ग्रेनेडियर्श को दिया गया था। सीमा की पहचान केवल एक पत्थर से की जाती थी। मेजर जनरल सगत सिंह को चीन कमांडर दमकी देते हुए, नाथू ला से पीछे हटने के लिए दबाव डालने लग गए। लेकिन उन्होंने पीछे हटने से साफ़ मना कर दिया इससे दोनों सैनिक हाथापाई पर उतर आए। भारतीय जवान ने चीन सेना को उनकी तरफ़ खदेड़ते हुए और सीमा पर दोनों और से हो रहीं हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए, मेजर जनरल संगत सिंह ने सीमा पर तारबंदी करने का निर्णय लिया। तारबंदी का काम इंजीनियर यूनिट को दिया गया था। उसी समय नाथू ला से सेबू ला तक तार बिछाने का काम तेज़ी से चल रहा था। चीन को अपनी विस्तार नीति मिट्टी में मिलते दिख रहीं थीं। चीन भोखलाते हुए भारत सिपाई को अपनी धमकियां से डराने लगा। भारतीय सिपाई बिना डर के तारबन्दी में लगे रहे। गुस्साई चीन सेना बंकरों में लोट आईं। इसके 1 घंटे बाद ही चीन सेना द्वारा अपने बंकरों में घुसकर भारतीय जवान के ऊपर गोलीबारी शुरू कर दी थीं जिसे एक गोली मेजर जनरल संगत सिंह से बात करने आय कर्नल राय सिंह को लग गई थी। केवल 10 मिनट के भीतर इंजीनियर सहित 65 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। भारत, चीन की ये लड़ाई 11-15 सितंबर तक चली थी। ये देखकर भारतीय जवानों में और आक्रोश पैदा हो गया । चीन सेना को मुहतोड़ जवाब देने की कोशिश कामयाब रहीं। भारतीय सेना ने चीन सेना के 32 सैनिक मार दिए थे। - 1 अक्टूबर 1967 – चो ला झड़प।
नाथू ला झड़प को 15 दिन हुए ही थे।1 अक्टूबर 1967 सिक्किम के चाऊ ला में दोनों सेनाएं एक बार फ़िर सामने-सामने पत्थरबाज़ी करते हुए हाथपाई पर उतार आईं थीं। 7/11 गोरखा राइफल्स एवं 10 जैक राइफल्स नामक भारतीय बटालियनों ने चीन सेना को करारा जवाब देते हुए, उन्हें 3 किलो मीटर तक पीछे खदेड़ दिया। भारतीय जवान ने चीन सेना के 340 सैनिकों को मार गिराया था।
20 अक्टूबर 1975 – तुलुंग ला झड़प।
20अक्टूबर 1975 के दिन चीन सेनाएँ तुलुंग ला के दक्षिण में भारतीय क्षेत्र में घुस आईं थी और असम रायफ़ल्स के जवानों पर हमला कर शुरू कर दिया साथ ही चीनियों ने उन पर गोलीबारी भी शुरू कर दी। जिसे की चार भारतीय जवान शहीद हुए थे।
लेकिन फ्रांस के समाचार पत्र ला मोंडे के अनुसार इस घटना का जिम्मेदार भारत को ठराया गया था। चीन संस्करण के अनुसार, उनका दावा यह था कि उन्होंने केवल ‘आत्मरक्षा’ में भारतीय सैनिकों पर गोली चलाई थी।
1986-87 – नामका चू झड़प।
20 अक्टूबर 1975 की झड़प के बाद इस जंग की शुरुआत अरुणाचल प्रदेश के ‘नामका चू’ से हुई थी। 1985 की गर्मियों के समय भारतीय सिपाही ‘समदोरंग चू’ और ‘नामका चू’ पर तैनात थीं। लेकिन जब कड़ाके की ठंड पड़ना शुरू हो जाती थीं, सेना वहा से पलायन करके सर्दियों में अपनी पोजीशन बदल लिया करती थीं। और गर्मियों में आकर फ़िर से तैनात हो जाया करती थीं। हर बार की तरह इस बार भी सर्दियां आते ही, भारतीय सिपाहियों ने अपनी पोजीशन को बदल दी। 1986 की गर्मियों में जब भारतीय सिपाही वापस अपनी पोजीशन लेने पहुंचे, तो देखा की चीन सेना ने समदोरंग चू जो की एक भारतीय इलाका था, उसमे अपने तम्बू गाड़े हुए थे। भारतीय सिपाहियों ने चीन सिपाहियों को समझाने का ख़ूब प्रयास किया की वह अपनी सीमा में चले जाएं। चीन फ़िर से भारतीय सिपाही को युद्ध की धमकी देने लगा, पूर्वी इलाकों में सेना की तैनाती पर ज़ोर देने लगा। इधर भारतीय सिपाहियों ने भी युद्ध की तैयारी करते हुए जनरल सुंदर जी ने “ऑपरेशन फाल्कन” तैयार करने का निर्णय लिया। इस मिशन का उद्देश्य चीन सेना को शरहद तक पहुंचाना और उसे मुंहतोड़ जवाब देना था। तवांग के आगे जाने के लिए सड़क का निर्माण नहीं किया गया था, जनरल सुंदर जी ने जेमिथांग में एक ब्रिगेड को एयरलैंड करने के लिए हैवी लिफ्ट MI-26 हेलीकॉप्टर का उपयोग करने का फैसला लिया। हाथुंग ला पहाड़ी पर भारतीय सिपाहियों ने चीन सेना पर नज़र रखते हुए अपनी पोजीशन को बनाएं रखा। जनरल सुंदर अपनी रणनीति को जारी रखते हुए, “ऑपरेशन फाल्कन” के द्वारा लद्दाख के डेमचॉक और उत्तरी सिक्किम में T-72 टैंक भी उतार लिए गए। भारतीय सिपाहियों की तैयारी को देखते हुए चीन सेना बिना खून ख़राबे के पीछे हट गई।
16 जून 2017 – दोकलाम की झड़प।
1986 की झड़प के बाद कोई बड़ी झड़प नहीं हुई। परन्तु 16 जून 2017 को डोकलाम में एक दूसरे के आमने-सामने आ खड़ी हुईं थीं। चीन ने सेना के आसानी आवाचलन के लिए डोकलाम में सड़क बिछाने का काम शुरू कर दिया था। भारतीय सेना ने चीनी सेना को चेतावनी देते हुए उन्हें वह इलाका उनका नहीं है और यहां पर वह किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य शुरू नहीं कर सकता। भारतीय सिपाहियों ने चीनी सेना को सड़क बनाने से रोक दिया। दोनों सेनाएं पत्थरबाज़ी और हाथपाई पर उतर आई थी। इसके बाद 28 अगस्त 2017 को दोनों सरकारों के प्रयास से रोक दिया गया था।
दोनों देशों के सेनाएं अगस्त 2017 में पेगोंग में आमने-सामने आ गई थी। दोनों सेनाओं के बीज पैगोंग झील का मामला गरमाने लगा और हाथापाई, पत्थरबाज़ी पर उतर आए। इस हिंसक घटना में 72 भारतीय सिपाई घायल हुए। पूर्वी लद्दाख की पेगोंग झील, भारत-चीन के बीज खींची गई लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल में आती हैं। यह झील14 हजार 270 फीट कि उंजाई पर स्थित है, जो लद्दाख से तिब्बत के बीज फैली हुई है। यह 135 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चोड़ी है। जिसमे भारत व चीन दोनों की सेना अपनी नाव से इस झील में पेट्रोलिंग करती है। लड़ाई का प्रमुख मुद्दा झील के बिच से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल गुजरना है। इसके दो- तियाही भाग पर चीन का नियंत्रण है। जिसे लेकर दोनों देशों के मध्य तनाव की स्थिति बनी रहती है।
15 जून 2020 – गलवान घाटी घटना।
भारत ,चीन सीमा पर दोनों सेनाओं के मध्य तनाव की स्थिति रुकने का नाम नहीं ले रहीं। 15 जून से शरू हुई हिंसक झड़प ने अब युद्ध का मोड़ ले लिया है। आज हालात ऐसे है की दोनों सेनाओं ने अपने आधुनिक हतियार सिमा क्षेत्र पर तैनात कर रखें है। थोड़ी सी भी चूक लाखों की जान ले सकती है। शरुवात से ही सीमा विवाद को कमांडर लेवल की बात करके सुलझाया जा रहा था परन्तु चीन इसे शांति पूर्वक नहीं सुलझाना चाहता। चीन की सेना पीछे हटने के लिए तैयार हो गई थी लेकिन फिर फिंगर 4 (पांगोंग लेक) की और बढ़ती चीन की सेना ने ये दिखा दिया की वह अपनी विस्तारवादी निति का गुलाम है। रिपोर्ट एजेंसी ANI के मुताबिक़ बताया गया की इस घटना में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे। जबकि 43 से अधिक चीन सैनिक मारे गए थे। इस हिंसक घटना के बाद लगातार तनाव की स्थिति बनी हुई है।
सीमा का जायज़ा लेने के लिए रक्षामंत्री ने विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों और के साथ बैठक की। जिसमें यह साफ़ कह दिया गया कि लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के साथ डी-एस्केलेशन प्रक्रिया के दौरान दोनों पक्ष में तनाव की स्थिति बनी थीं। इसके बाद चीन विदेश मंत्री ने भारत सीमा विवाद को शांति पूर्वक सुलझाने के लिए अपनी सहमति जताई थी।
कई बार हुई कमांडरों की बैठक का अभी तक कोई पुख्ता निष्कर्ष नहीं निकला है। चीन की सेना कई बार चरणबद्ध तरीके से पीछे हटने के लिए बोल चुकी है परन्तु सेना हटाने के बजाय चीन सैनिकों और हथियारों की तादात बढ़ाता जा रहा है।
30-31 अगस्त – पैगोंग झील घटना।
29 और 30 अगस्त को भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में पैगोंग झील के दक्षिण पहाड़ी पर कब्ज़ा करने जा रही चीन सेना की कोशिश को नाकाम कर दिया। रविवार की रात जब चीन के 445 सैनिक लद्दाख में पेगोंग झील के चुसुल की और अपनी यथास्थिति बदलने पहुंच रही थी, लेकिन भारतीय सेना ने उनकी साजिश को पहले ही समझ कर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। भारतीय सेना ने लद्दाख में पेगाेंग में सिपाही और टेंको को तैनात कर दिया। भारत के इस गतिविधि को बढ़ते देख चीन भोखलने लगा है। चीन की चालबाज़ी कोशिश को देखते हुए, लदाख के पूर्वी क्षेत्र में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भी 10-12 हज़ार सैनिकों को तैनात कर दिया गया है। इसके साथ ही चीन की वायु गतिविधियां बढ़ते देख, भारतीय वायु सेना ने भी गतिविधि बढ़ा ली। चीन ने अपनी और से लड़ाकू विमान J 20 को होतान एयरबेस में तैनात कर लिया है। भारतीय सेना ने अपने लड़ाकू विमान सुखोई 30 एमकेआई, जगुआर और मिराज 2000 विमान और अब रफाल को पूर्वी लद्दाख के सीमा के नज़दीक वाले एयरबेस में पहले से तैनात किए हुए है।
तनाव को कम करने के लिए दोनों और से बिग्रेड कमांडर लेवल की बैठक मोल्डो में कई घंटे चली। चीन चाहता है की भारतीय सेना ब्लैक टॉप के आस-पास की पढ़ाइयों से अपनी सेना को हटा ले। दोनों और से चल रहीं कूटनीति स्तर वार्ता में साफ़ तौर से चीन को चेतावनी दी गई हैं, की भारत सीमा पर शांति चाहता है। इसलिए वह किसी चालक रणनीति का सहारा न ले। सीमा से पीछे हट जाएं।
सूत्रों ने बताया कि हालात से निपटने के लिए दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें विदेश मंत्री – जयशंकर, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, सुरक्षा सलाहकार – अजित डोभाल, सीडीएस – विपिन रावत आदि मौजूद थे।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में भारत को चेतावनी दी गई है। अगर भारत का चीन के साथ युद्ध होता है, तो उसे 1962 के युद्ध जैसा परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। वह चीन की पावर के आगे नहीं टिक सकता। न ही उसे युद्ध के लिए अमेरिका से कोई सहायता मिलने वाली है।
प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में कहा है की “ भारत शांति और दोस्ती चाहता है लेकिन वो अपनी सम्प्रभुता के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। “
भारत के रक्षा मंत्री – राजनाथ सींग ने भी साफ़ शब्दों में चीन को चेतावनी देते हुए कहा है की “ भारत अब सिमा पर किसी भी तरीके की घुसपैठ या LAC के स्टेटस को एक तरफ़ा बदलने का प्रयास किसी भी सूरत में बर्दाश नहीं किया जाएगा।“
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